जंगल में एक ऋषि रहा करते थे। बड़ी प्रसिद्धि थी उनकी। राजा ने अपने बेटे को कहा कि तुम उन ऋषि के आश्रम जाओ और वहां अध्ययन करो। राजकुमार ने कहा कि मुझे क्यों जाना, उन्हीं को यहीं बुला लें। राजमहल में रहें, हमें पढ़ाएं। राजा अपने बेटे पर हंसे और कहा कि तुम एक बार जाकर देखो, अगर वे आने को राजी हों तो ले आओ।
राजकुमार हाथी-घोड़ों और पूरी तामझाम के साथ ऋषि की कुटिया के सामने पहुंचा। राजकुमार का आगमन हुआ है इसकी सूचना के लिए नगाड़े शंख आदि बजवाए गए। उसे लगता था कि ऋषि स्वागत को आएंगे, पर नहीं आए। राजकुमार ने पुकारा तो भीतर से आवाज आई- ‘कौन?’ राजकुमार बोला, “मैं युवराज हूं आपके देश का? मेरे आने की आवाज आपको सुनाई नहीं पड़ी!”
भीतर से न कोई आवाज आई, न दरवाजा खुला। परेशान होकर राजकुमार महल लौट आया। राजा से सारी बात कही। राजा ने कहा कि एक प्रयास और करो लेकिन वहां एक शिक्षार्थी की तरह जाना। यह सुनते ही राजकुमार बिफर गया। उसने कहा कि मेरे यह बताने पर भी कि मैं युवराज हूं, उन्होंने दरवाजा ही नहीं खोला। कैसा गुरु है? उसे यह भी नहीं पता कि राजपरिवार का कैसे सम्मान करना चाहिए। उसे तो मृत्युदंड मिलना चाहिए।
राजा ने जिद करके अपने बेटे को दोबारा भेजा। इस बार वह चुपचाप कुटिया के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया। भीतर से आवाज आई- “कौन?” इस बार उसने अपने हाथी-घोड़े, रथ कुटिया से बहुत दूर छोड़ दिए थे और पैदल चलता अकेला ही द्वार पर पहुंचा था।
भीतर से दोबारा आवाज आई ‘कौन?” उस युवा ने कहा, “अगर मैं जानता होता कि मैं कौन हूं तो मुझे आपके पास आने की जरूरत ही नहीं थी।” विद्यार्थी का अर्थ है कि जब वह विद्या अध्ययन को जाएगा तो उसे अहंकार से मुक्त होकर पहुंचना होगा। शिक्षा पूरी होने पर वह युवा लौटकर जाने लगा तो गुरु ने पूछा, “क्या तुम जानते हो कि तुम कौन हो?”
उसने उत्तर दिया- “मैं अग्नि हूं?” वेदसूक्त है- ‘अग्निनाम् ही अग्नि समिद्यते ’ अग्नि की एक जरा सी चिंगारी, देखते ही देखते सब ओर फैल जाती है। वह हम सबके भीतर की अग्नि है जिससे राष्ट्र का निर्माण होता है। वह अग्नि युवाओं के अंदर की अग्नि है जिसका राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ा योगदान होता है।
राष्ट्र का निर्माण ईंट-पत्थर, गारों से नहीं होता। राष्ट्र का निर्माण होता है- युवाओं के सपनों से। राष्ट्र सोने से राष्ट्र बनते, सपनों से राष्ट्र बनते हैं। राष्ट्र का निर्माण इच्छाओं से नहीं होता, इरादों से राष्ट्र बनते हैं, संकल्प से राष्ट्र बनते हैं। राष्ट्र का निर्माण दब्बू बने रहकर नहीं होता। युवाओं के अंदर साहस जब हिलोरे मारता है तब राष्ट्र खड़े होते हैं, राष्ट्र महान बनते हैं। और राष्ट्र का निर्माण होता है सहकार से। सहकार यानी सब लोग साथ-साथ एक संकल्प के साथ चलें तो राष्ट्रनिर्माण गति पकड़ता है।
ऋग्वेद का एक मंत्र है-
समानोमंत्रः समितिः समानीं समानं मनः सः चित्तमेषाम्
समानं मंत्र अभिमंत्रेये वः समानेन वो हविषा जुहोमि...
हमारी मंत्रणाएं एक समान हो। हम जो कार्यक्रम यहां से लेकर जाएंगे वह एक समान हो। उन में समानता हो। हमारी समितियों में समानता हो। लेकिन यही मंत्र कहता है कि जो संकल्प आप यहां से लेकर जाएंगे वे यज्ञ की आहुतियों की तरह हैं जिनको यदि बहुगुणित करना है, फैलाना है तो उनको अपने जीवन में जीना पड़ेगा। यह कार्य युवाओं और विद्यार्थियों से बेहतर कौन कर सकता है!
चरित्र, बातचीत और कर्मों का जो अंतर है, वही हमारी सबसे बड़ी बाधा है। हम बोलते कुछ हैं, करते कुछ और सोचते कुछ हैं। इसी से नैतिकता का, चरित्र का ह्रास होता है। हमारे सोचने, बोलने और करने के बीच दूरी जितनी कम होगी, उतना ही ज्यादा व्यक्ति मजबूत होगा, समाज मजबूत होगा, राष्ट्र मजबूत होगा, मानवता मजबूत होगी, पूरे राष्ट्र का कल्याण होगा।
हम किसी सीमा से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम भारत में पैदा हुए हैं और हमें उसपर गर्व है लेकिन हमारी सीमाएं अनंत हैं। हमारे सरोकार भी अनंत हैं। ‘उदार चरितानाणं तु वसुधैव कुटुंबकम’। हम वसुधैव कुटुंबकम कहकर अपने मन में बहुत बड़ा संकल्प लेते हैं। यह एक नैतिक संकल्प, एक जिम्मेवारी है जो आप युवा लेते हैं। सारी दुनिया के दर्शन में कहीं यह बात नहीं कही गई है कि पूरी दुनिया एक कुटुंब है। हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले केवल यह कहा नहीं बल्कि इसे जिया भी। इसलिए हम जगतगुरु थे। और हमें दुनिया की जो समस्याएं हैं उनको समझते हुए उनके प्रति सरोकार रखते हुए उनका समाधान ढूंढना है क्योंकि वे हम ही हैं जो ऐसा कर सकते हैं।
जब मेरे नोबेल प्राइज की घोषणा हुई तो किसी विदेशी पत्रकार ने मुझसे कहा कि कैलाश जी आपने एक बड़ी समस्या के खिलाफ लड़ाई लड़ी और वह समस्या उजागर हुई है। मैंने कहा ‘समस्याओं को उजागर करने में मुझे भरोसा नहीं है। मुझे समाधान तक पहुंचने में भरोसा है।’ मैंने उनसे अंग्रेजी में कहा कि हम सैकड़ों समस्याओं की धरती हो सकते हैं लेकिन हम अरबों समाधानों की भी धरती हैं और वह समाधान भारत की युवा पीढ़ी है। आप अपने नेता हैं, आप अपने हीरो हैं, आप अपने मार्गदर्शक हैं। आपके अंदर वह ऊर्जा है, वह सच्चाई है, वह ईमानदारी है, वे सपने हैं, वे संकल्प हैं जिससे हमारे उम्र के लोगों को प्रेरणा लेनी पड़ेगी, लेनी चाहिए। जो समझते हैं कि युवा कोई समस्या है वे झूठ बोलते हैं। युवा ही समाधान हैं देश और दुनिया के।
हमारा दर्शन कहता है कि हम समय से परे हैं, हम काल और देश की सीमाओं से परे हैं। उसी दर्शन में हमारी संस्कृति प्रभावित है और उसी संस्कृति से हमारी शिक्षा प्रभावित होनी चाहिए और उसी शिक्षा से हम सब प्रभावित होने चाहिए। हम लगातार चलते हैं, हम मरते नहीं हैं क्योंकि हम जन्मे नहीं हैं। इसीलिए शंकराचार्य जी ने एक शिव स्रोत लिखते हुए लिखा- ‘न मे द्वेषरागौ…’ न मैं द्वेष हूं और न ही मैं राग हूं। विश्वगुरु राष्ट्र के युवाओं के लिए यही सबसे बड़ा मंत्र होना चाहिए।
अगर हम अपने चरित्र में किसी से द्वेष रखते हैं, अपनी सोच में हिंसा रखते हैं तो हम धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः की शंकराचार्य जी की बात को मन से स्वीकार नहीं करते। मैं यह बात सिर्फ आपसे या दूर कहीं ऑनलाइन सुन रहे युवाओं से नहीं कह रहा हूं बल्कि मैं आपके माध्यम से हर युवा से बात कर रहा हूं चाहे वह किसी विचारधारा का हो, मजहब का हो। हम बूढ़े नहीं होते क्योंकि हम शाश्वत हैं। भारत कभी बूढ़ा नहीं होगा क्योंकि भारत शाश्वत है और इस शाश्वतता को आगे बढ़ाने का काम आप युवाओं का है, सार्वभौमिकता को आगे बढ़ाने का काम आपका है।
कितने आश्चर्य की बात है कि लोग अब हमें समन्वय का पाठ पढ़ाते हैं। हजारों साल पहले भारत के ऋषि ने आवाज दी- ‘संगच्छवं, संवद्धवं, संवो मनांसि जानताम।’ सब साथ-साथ चलें। हम साथ चलेंगे, कोई बिछुड़ेगा नहीं, कोई पिछड़ेगा नहीं। हम एक साथ चलें, एकसाथ बोलें, हमारे मन एक से हों। इन्क्लुजन और समानता का पाठ तो हमने विश्व को दिया है। संवदध्वं, हम सब बोलेंगे, भले ही हमारे बीच आपस में विचारैक्य न हो, विचारों की समानता उतनी न हो, लेकिन द्वेषपूर्वक बर्ताव हम नहीं करेंगे किसी के साथ। हम संवद्धवं में विश्वास रखते हैं। सबके लिए बोलने का अवसर है, वातावरण है। ‘वादे-वादे जायते तत्वबोधः’ हम वातार्लाप से तत्वबोध या सत्य की खोज करने वाले लोग हैं। हमारे यहां कहा गया है- एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति । एक ही बात को अलग-अलग तरीके से लोग कह सकते हैं। विविधता में एकता हमारी ताकत है।
मैं हमेशा कहता हं कि दुनिया ने वस्तुओं का भूमंडलीकरण किया- डेटा का, व्यापार का, बाजार का, आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस के रूप में ज्ञान का आदि, आदि। भारत की भूमि से अगर आपको भूमंडलीकरण करना है तो आएं हमलोग साथ चलें और करूणा का भूमंडलीकरण करें। दूसरों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझें।
हम टुकड़ों-टुकड़ों में देखने वाले लोग नहीं रहे हैं। पाश्चात्य दर्शन ने हमें चीजों को तोड़-तोड़कर देखना सिखाया है। हमारे यहां तो आयुर्वेद में भी पंचमहाभूत को समझते हुए, शरीर में वात पित्त कफ आदि के रूप जो पंच महाभूत हैं, उनका तालमेल सिखाकर सारे रोग का निदान बताया जाता है। हम समग्रता के दृष्टिकोण से दुनिया को देखते हैं और उसके समाधान खोजते हैं। इसीलिए कहा गया है-
पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।
यह भी पूरा है, वह भी पूरा है। पूरे में से पूरे को जोड़ दो, पूरे में से पूरे को निकाल लो कोई फर्क नहीं पड़ता। यह सम्पूर्णता का सिद्धांत सिर्फ गणित का सिद्धांत नहीं है यह सामाजिक और दार्शनिक सिद्धांत है। आप युवाओं में जो क्रोध है, आक्रोश है वह सृजन के लिए हो। सृजन की अग्नि की हम मन्यु के रूप में प्रार्थना करते हैं- ‘मन्युरसि मन्युमहि देहि’ हमारी भुजाओं में वो आवेश भर दो, हमारी रगों में वो खून भर दो कि भारत माता की एक भी बेटी बलात्कार की शिकार न हो, यौन हिंसा की शिकार न हो, ये ताकत हमें परमात्मा दो। और आप विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन हैं, इस नाते आप दुनिया में युवाओं के सबसे बड़े प्रतिनिधि संगठन हैं। इसलिए मैं आपसे यह आग्रह करता हूं आपका अनुशासित संगठन उसी मन्यु का आह्वान करे और संकल्प ले कि वह किसी बच्चे पर, किसी बेटी पर, किसी बहन पर अत्याचार नहीं होने देगा, उसका शोषण नहीं होने देगा।
2018 में आदरणीय मोहन भागवत जी ने नागपुर में विजयदशमी के पर्व पर उद्बोधन के लिए मुझे आमंत्रित किया था, तब भी मैंने कहा था कि आप लोग इन बेटियों, इन बेटों के सुरक्षाचक्र बनिए। आप जिलों में हैं, शहरों, कस्बों और गांवों में हैं। कोई पुलिस वो सुरक्षा नहीं दे सकती जो भारत के नौजवान और आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोग दे सकते हैं यदि वे उठकर यह शपथ लें कि अपने-अपने इलाके में हम यह अन्याय नहीं होने देंगे। आपको भीम की तरह गदा उठाने की जरूरत नहीं है, कानून की जरूरत है। जो कानून बने हैं उन्हें लागू कराइए। यह संवैधानिक गारंटी ही हमारा हथियार है। दुर्भाग्य से देश में आज तक एक कानून नहीं है जो कि बच्चों की खरीद-फरोख्त को रोक सके। मानव के कारोबार को रोक सके।
मेरे भीतर की अग्नि यदि आपके भीतर की समिधा को प्रज्वलित कर सकी, तो मैं इस यज्ञ की पूर्णाहुति समझूंगा। मुझे बहुत खुशी है कि देशभर के जो लोग हमारी बात सुन रहे हैं, कम से कम वे हमारे हमारे बच्चों को बचाने का संकल्प लेकर लौटेंगे। हमारी बेटियों को लांछित होने से बचाने का संकल्प लेकर लौटेंगे। पोर्नोग्राफी के रूप में यह जो दुश्चरित्रता फैल रही है, उसके खिलाफ आवाज उठाएंगे। घरों में, स्कूलों में, बाहर सड़कों पर, बाजारों में हमारे बेटियों और बेटों को यौन उत्पीड़ित करने की जो दुश्चरित्रता दिखती है, हम भारत को महान राष्ट्र बनाने के लिए इस कलंक को मिटाएंगे क्योंकि हम ही हैं वे लोग जो दुनिया को हर समस्या का समाधान देंगे। आप युवा ही समाधान बनेंगे।
(नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में दिए उद्बोधन का सारांश)
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